ज़िंदगी ने अपने किताब के,
चन्द चोबीस ज़र्द पन्ने क्या पढने को उधार दिए
कमबख्त समझने लगी, हम तो हमारे हीं घुलाम हुए |
हाँ यकीनन हीं, माज़ी मुस्तक़बिल से गिरनबार होता है
मगर ये सदी नाफर्मान है, और बड़े ज़िद्दी हैं हम
अभी दो पहर हीं तो बीते हैं, अब हमने लिखना शुरू किया है |
चन्द चोबीस ज़र्द पन्ने क्या पढने को उधार दिए
कमबख्त समझने लगी, हम तो हमारे हीं घुलाम हुए |
हाँ यकीनन हीं, माज़ी मुस्तक़बिल से गिरनबार होता है
मगर ये सदी नाफर्मान है, और बड़े ज़िद्दी हैं हम
अभी दो पहर हीं तो बीते हैं, अब हमने लिखना शुरू किया है |
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